‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के स्वप्नद्रष्टा और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और स्पेसएक्स और टेस्ला प्रमुख अमेरिकी टेक अरबपति एलन मस्क के बीच उपजा मनमुटाव देश-दुनिया के पूंजीवादी लोकतांत्रिक सियासत और प्रशासन के लिए शोध का विषय है। क्योंकि इसका असर न केवल अमेरिका के लोगों बल्कि पूरी दुनिया के मनोमस्तिष्क पर पड़ना लाजिमी है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप व एलन मस्क के बीच बढ़ती दूरियों के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मायने आईने की तरह साफ हैं! जिसे समझने की जरूरत है, क्योंकि ट्रंप दुनिया के थानेदार समझे जाते हैं।
हालांकि, इनके बीच की दरकती हुई दोस्ती से वह भारतीय कहावत पुनः चरितार्थ हुई है जिसमें अक्सर नेताओं संग दोस्ती की तुलना वैश्या संग प्रेम से की जाती है, यानी कि क्षणभंगुर समझा जाता है। समझा जाता है कि वेश्यागामी की संपत्ति लूट जाने के बाद या वेश्याओं के जीवन में किसी अन्य धनाढ्य व्यक्ति के प्रवेश पा लेने के पश्चात उसका पहले वाला प्रेम जिस प्रकार से समाप्त हो जाता है। कुछ वैसा ही हश्र नेताओं के साथ यारी-दोस्ती रखने वाले व्यक्तियों/कार्यकर्ताओं का होता है, क्योंकि जब वह किसी नेता के लिए व्यक्ति प्रबंधन, बूथ प्रबंधन या कार्यदक्षता प्रबंधन के लायक नहीं रह जाता है तो फिर नेता भी उससे मुख मोड़ लेता है। उसके कोई काम नहीं करता और न ही आगे बढ़ने देता है। मेरा मानना है कि ट्रम्प की शातिर सियासी टीम ने उद्योगपति ऐलन मस्क के साथ भी कुछ वैसा ही किया होगा, जैसा कि आमतौर भारतीय राजनीति में नेताओं के शागिर्द गुल खिलाते रहते हैं।
आपको बता दें कि नेताओं के शागिर्द में देशी-विदेशी बड़े-बड़े नेता, अधिकारी, उद्योगपति, सामाजिक हस्तियां, चर्चित सेलिब्रिटी, पत्रकार, अधिवक्ता, अपने-अपने पेशे के सफल पेशेवर आदि होते हैं, जिनके बीच एक दूसरे की उड़ती पतंग काटने की होड़ मची रहती है। इसलिए समझदार लोग नेताओं से याराना या नेताईन से यारी रखने के दौरान बेहद चौकन्ने रहते हैं। यही वजह है कि स्पेसएक्स और टेस्ला प्रमुख अमेरिकी टेक अरबपति एलन मस्क ने ट्रंप प्रशासन के डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीई) यानी खर्च कटौती विभाग से अलग होने का एलान किया है।
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दरअसल, 29 मई 2025 दिन गुरुवार को मस्क ने एक्स पर लिखा, “विशेष सरकारी कर्मचारी के रूप में मेरा तय समय पूरा होने पर, मैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे फालतू खर्च को कम करने का मौका दिया।” उल्लेखनीय है कि उन्हें ‘स्पेशल गवर्नमेंट एम्प्लाई’ का दर्जा मिला था जिसके तहत हर साल 130 दिनों तक उन्हें संघीय नौकरी में रहने की इजाज़त थी। इस साल 20 जनवरी को ट्रंप के शपथ ग्रहण से जोड़ा जाये तो वैसे भी उनके कार्यकाल की सीमा 31 मई 2025 के अंत में ख़त्म होने वाली थी।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार बताते हैं कि मस्क का सरकार से बाहर निकलना दरअसल ट्रंप के बजट से ‘निराशा’ जताने के बाद हुआ, जिसमें मल्टी-ट्रिलियन डॉलर की टैक्स छूट और रक्षा खर्च को बढ़ावा देने वाले प्रस्ताव मौजूद हैं। जहां ट्रंप ने अपने बजट बिल को ‘बड़ा और सुंदर’ बताया था, वहीं मस्क ने इस बिल की आलोचना की थी। जबकि यह बिल राष्ट्रपति ट्रंप के एजेंडे का अहम हिस्सा है। व्हाइट हाउस ने कहा है कि बुधवार (अमेरिकी समयानुसार) से मस्क के ‘स्पेशल गवर्नमेंट एम्प्लाई’ दर्जे को ख़त्म कर दिया जाएगा। लेकिन मस्क का बाहर होना सिर्फ ट्रंप सरकार में एक बड़े उलट फेर को ही नहीं दर्शाता है, बल्कि कुछ आगे की रणनीतिक विफलता की भी चुगली करता है, क्योंकि मस्क रिपब्लिकन पार्टी के सबसे बड़े डोनर रहे हैं। उन्होंने पिछले साल क़रीब 25 करोड़ डॉलर का चंदा दिया था।
समझा जाता है कि इतने बड़े डोनेशन के बाद उनके और ट्रंप के बीच नज़दीकियां बढ़ गई थीं। हालांकि इस दौरान उनकी इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला के मुनाफ़े में भारी गिरावट देखी गई। वहीं, टेस्ला ने हाल ही में निवेशकों को चेतावनी दी थी कि वित्तीय मुश्किलें जारी रह सकती हैं। कंपनी ने ग्रोथ का पूर्वानुमान देने से इनकार करते हुए कहा कि ‘राजनीतिक सेंटिमेंट में बदलाव’, वाहनों की मांग को काफ़ी हद तक नुक़सान पहुंचा सकती है। लिहाजा मस्क ने पिछले महीने निवेशकों से कहा था कि डीओजीई में उनकी व्यस्तता काफ़ी कम हो जाएगी और वह टेस्ला को अधिक समय दे पाएंगे। दरअसल, सरकारी भूमिका निभाने से मस्क की कंपनियों, खासकर टेस्ला पर नकारात्मक असर पड़ा है। टेस्ला का मुनाफा 71 प्रतिशत तक गिरा है। मस्क की व्यावसायिक और राजनीतिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन को लेकर उनके निवेशकों में भी चिंता होने लगी थी।
राजनीतिक व प्रशासनिक मामलों के जानकारों के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन में एक अहम पद पर रहते हुए एलन मस्क कई बार विवादों में भी घिरे रहे, जिससे अमेरिकी राष्ट्रपति की देशी साख तक प्रभावित हुई और विदेशों में भी उनकी आलोचना हुई। इसलिए आइए एक नज़र डालते हैं उन चुनिंदे विवादों पर जिससे मस्क को इस नौबत तक पहुंचना पड़ा।
पहला, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बजट की आलोचना उन्हें नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि वह उनके बेहद करीब थे। यही वजह है कि बजट बिल की आलोचना के बाद एलन मस्क और ट्रंप के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं। ट्रंप ने बजट विधेयक पेश किया था जिसे बहुत कम अंतर के साथ पिछले हफ़्ते यूएस हाउस ऑफ़ रेप्रेज़ेंटेटिव्स ने पास किया। अब यह बिल सीनेट के पास जाएगा। जबकि मस्क ने एक मीडिया साक्षात्कार में कहा था कि इस बिल से संघीय घाटा बढ़ेगा और ये बिल डीओजीई में किए जा रहे ‘कामों को कमज़ोर’ करता है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि ‘ट्रंप की योजना बजट घाटे को कम करने की जगह बढ़ाएगी।’
लेकिन इस बजट बिल को ट्रंप ने ‘बड़ा और सुंदर’ बताया था, इस पर मस्क ने कहा, “यह बिल बड़ा या सुंदर हो सकता है? मुझे नहीं पता कि ये दोनों हो सकता है।” गौरतलब है कि इस बिल में चार ट्रिलियन डॉलर के कर्ज की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव है, जिसका मतलब है कि अपने खर्चों के लिए सरकार अधिक कर्ज ले सकती है। लिहाजा उनके इस बयान के बाद से ही लगने लगा था कि ट्रंप प्रशासन और एलन मस्क के बीच दूरियां बढ़ने लगी हैं।
दूसरा, अमेरिका के राष्ट्रपति की कैबिनेट बैठकों में जो नोकझोंक उनके चलते हुए, उससे भी मस्क का प्रभाव कम किया गया। बता दें कि बैठक के दौरान ही खर्च कटौती को लेकर एलन मस्क और ट्रंप सरकार के कुछ मंत्रियों के बीच मतभेद तीखे़ हो गए थे। बताया जाता है कि मार्च 2025 की शुरुआत में सरकारी खर्च और कर्मचारियों की संख्या में कटौती के एलन मस्क के प्रयासों पर चर्चा करने के लिए कैबिनेट मंत्रियों की एक बैठक बुलाई गई थी। लिहाजा, इस बैठक के दौरान मस्क व नेताओं में तीखी नोकझोंक हुई और विदेश मंत्री मार्को रुबियो की आलोचना करते हुए मस्क ने कहा कि वो ‘टीवी पर ही अच्छे’ दिखते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मस्क ने विदेश मंत्री मार्को रुबियो पर विदेश विभाग में पर्याप्त स्टाफ़ की कटौती करने में विफल रहने का आरोप लगाया। वहीं, एलन मस्क की इस दौरान परिवहन मंत्री सीन डफ़ी के साथ भी बहस हुई क्योंकि डीओजीई ने फ़ेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन में ट्रैफ़िक कंट्रोलर्स की संख्या कम करने की कोशिश की, जबकि उनकी संख्या पहले से ही कम है। समझा जाता है कि ये बहस इतनी ज्यादा बढ़ गई कि ट्रंप को बीच-बचाव करना पड़ा और डीओजीआई की शक्तियों को परिभाषित करना पड़ा। तब ट्रंप ने कहा था कि वो ‘अब भी डीओजीई का समर्थन करते हैं, लेकिन अब से फ़ैसला लेने का काम मंत्रियों के पास ही होगा और मस्क की टीम का काम सिर्फ़ सलाह देना होगा।’ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये बैठक बहुत जल्दबाज़ी में बुलाई गई थी और ट्रंप के हस्तक्षेप को इस बात का संकेत माना गया कि राष्ट्रपति ने एलन मस्क को मिली व्यापक शक्तियों को कम करने का निर्णय लिया। शायद यही बात एलन मस्क को नागवार गुजरी थी और है।
तीसरा, डीओजीई बनते ही विवेक रामास्वामी जिस तरह से बाहर हुए, उसका भी यह साइड इफेक्ट्स समझा जाता है। क्योंकि ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद विवेक रामास्वामी को एलन मस्क के साथ डीओजीई की ज़िम्मेदारी दी थी। लेकिन ट्रंप ने डीओजीई के गठन का एलान करते हुए इसकी ज़िम्मेदारी टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क के साथ विवेक रामास्वामी को दी थी। तब ट्रंप ने विवेक रामास्वामी को ‘देशभक्त अमेरिकी’ बताया था। लेकिन डीओजीई ने पहला फ़ैसला खुद को लेकर किया और कहा गया कि डीओजीई को केवल मस्क देखेंगे और विवेक रामास्वामी इससे बाहर हो गए। बता दें कि रामास्वामी महज़ 39 साल के अमेरिकी नागरिक हैं। चूंकि डीओजीई बनाने में विवेक रामास्वामी की अहम भूमिका मानी जाती है, इसलिए उनके साथ ठीक नहीं हुआ। हालांकि वह एफ़बीआई तक को बंद करने की वकालत करते रहे हैं। उस समय मीडिया में ऐसी ख़बरें भी आईं कि एच-1 वीज़ा को लेकर ट्रंप और विवेक के बीच मतभेद पैदा हो गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ”ट्रंप के क़रीबियों का कहना है कि रामास्वामी कंजर्वेटिव्स से सोशल मीडिया पर एच-1 बी वीज़ा को लेकर उलझ रहे थे और यह ट्रंप को पसंद नहीं आया। रामास्वामी हाई स्किल्ड वर्कर्स को एच-1 बी वीज़ा देने का समर्थन कर रहे थे, लेकिन ट्रंप के कई समर्थक इसका विरोध कर रहे थे।”
चतुर्थ, संघीय विभागों में कर्मचारियों की छंटनी भी एलन मस्क को भारी पड़ी। चूंकि अप्रैल 2025 में वॉशिंगटन डीसी में छंटनी के ख़िलाफ़ कर्मचारी संगठनों ने प्रदर्शन किया, क्योंकि एलन मस्क की टीम ने देश के लाखों संघीय कर्मचारियों को आधिकारिक सरकारी अकाउंट से कई ईमेल भेजे थे। जिसमें उन्हें इस्तीफे़ के बदले कई महीनों का वेतन (एकमुश्त रकम) देने की बात कही गई थी। इसमें कर्मचारियों को यह भी निर्देश गया कि वह बताएं कि उन्होंने सप्ताहभर में क्या काम किया? ऐसा न करने पर उन्हें नौकरी से निकालने की बात की गई थी। तब कुछ एजेंसियों ने अपने कर्मचारियों से कहा था कि वो इस ईमेल पर ध्यान न दें। वहीं डीओजीई ने कई ऐसे नवनियुक्त सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने का भी आदेश दिया, जो प्रोबेशन पर थे और जिन्हें पूर्ण सिविल सेवा सुरक्षा नहीं मिली थी। मसलन, इस आदेश को कुछ सरकारी एजेंसियों ने ये कहते हुए रद्द कर दिया कि उन्हें कर्मचारियों की ज़रूरत है। इनमें परमाणु हथियार सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाल रहे कर्मचारी भी शामिल थे। शिक्षा से जुड़े कर्मचारियों ने छंटनी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन भी किए। समझा जा रहा है कि कमोबेश सबका कोप एलन मस्क को अलग अलग तरीकों से झेलना पड़ा।
पांचवां, एलन मस्क ने यूएसएड को अचानक बंद करने का जो फ़ैसला लिया, वह उनकी रणनीतिक अदूरदर्शिता साबित हुई। उल्लेखनीय है कि गत तीन फ़रवरी 2025 को ही यूएसएड के सैकड़ों कर्मचारियों ने वॉशिंगटन डीसी में इसके हेडक्वार्टर के बाहर प्रदर्शन किया। क्योंकि बीते फ़रवरी माह में ही ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजेंसी यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डिवेलपमेंट (यूएसएड) को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया था। यही नहीं, ट्रंप ने एजेंसी पर ‘बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार’ के आरोप लगाए थे और मस्क ने भी यूएसएड को बंद करने की बात कही थी। इस तरह बीते जनवरी के अंत में यूएसएड के दो शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और एजेंसी की वेबसाइट डाउन हो गई। तब मस्क ने कई गंभीर आरोप लगाते हुए यूएसएड को ‘एक आपराधिक संगठन’ और ‘कट्टर वामपंथी राजनीतिक मनोवैज्ञानिक अभियान’ चलाने वाला कहा था। एक लाइव स्ट्रीम के दौरान उन्होंने कहा था कि ‘यह लाइलाज है।’ तब कई कर्मचारियों को बहुत कम मोहलत देते हुए एजेंसी छोड़ने को कहा गया। बता दें कि यह एजेंसी दुनिया भर में अरबों डॉलर की मदद बांटती है, जिनमें भारत समेत दुनिया के कई देश हैं। लिहाजा, यूएसएड की फ़ंडिंग बंद होने के बाद इसके ज़रिए चलाए जाने वाले स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े कई कार्यक्रमों पर असर पड़ने की आशंका जताई गई थी। तब मस्क के बयान के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा था कि यूएसएड की कई गतिविधियां जारी रहेंगी। समझा जाता है कि यहीं से रुबियो व मस्क के बीच मतभेद उपजे थे, जिसका शर्मनाक अंत मस्क की विदाई से हुआ।
छठा, अप्रैल 2025 में एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप के सीनियर ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो पर हमला बोला था। मस्क ने नवारो को बेवकूफ कहा था हालांकि नवारो ने उनकी टिप्पणियों का जवाब नहीं दिया था। नवारो को डोनाल्ड ट्रंप के reciprocal tariffs योजना का एक प्रमुख रणनीतिकार माना जाता है। व्हाइट हाउस ने भी एलन मस्क की टिप्पणियों को नजरअंदाज कर दिया था। मस्क ने नवारो की काबिलियत पर सवाल उठाते हुए उन्हें “ईंट की बोरी से भी गयाबीता मूर्ख” (dumber than a sack of bricks) कह डाला। यह बयानबाज़ी बताती है कि ट्रंप प्रशासन के भीतर कितने गहरे वैचारिक मतभेद चल रहे हैं।
सातवां, जैसे ही एलन मस्क के DOGE विभाग ने काम शुरू किया तो कई बातों को लेकर इसकी आलोचना शुरू हो गई। जैसे- मस्क ने ऐसे लोगों की तलाश की जो हफ्ते में 80 से ज्यादा घंटे काम करने के लिए तैयार हों। उन्होंने कॉस्ट कटिंग पर भी बहुत फोकस किया। DOGE विभाग ने हजारों लोगों को सरकारी पे रोल से हटा दिया, कई विभागों को छोटा कर दिया या उन्हें बंद कर दिया गया। इससे एलन मस्क का ट्रंप सरकार के कई अफसरों के साथ खुलेआम टकराव भी हुआ। इस साल अप्रैल में एलन मस्क ने अपनी नाराजगी को खुलकर जाहिर किया था और कहा था कि DOGE विभाग को लेकर वह अपने मकसद को हासिल नहीं कर सके।
आठवां, मस्क शुरू से ही मुक्त व्यापार (Free Trade) के समर्थक रहे हैं। इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप ने जब सभी आयातों पर 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा, तो मस्क ने उनसे सीधे अपील की कि इस फैसले को वापस लिया जाए। उनका मत था कि यह नीति अमेरिका की अर्थव्यवस्था और विदेशों से रिश्तों को नुकसान पहुंचाएगी। इस विवाद ने उस समय कानूनी मोड़ ले लिया जब 28 मई 2025 को अमेरिका की कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने फैसला दिया कि राष्ट्रपति ट्रंप ने “लिबरेशन डे टैरिफ्स” लगाकर अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण किया है। इस फैसले में टैरिफ रद्द कर दिए गए और मस्क की सोच को न्यायिक समर्थन मिला।
हालांकि ट्रंफ की विदाई के बाद अब यह सवाल उठने लगे हैं कि नई चुनौतियों के बीच आखिर ट्रंप की दिशा अब क्या होगी? क्योंकि एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप के शीर्ष सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया है। जिनमें उनकी बजट नीतियों और टैरिफ पर मतभेद के साथ-साथ सरकारी कामकाज की जटिलताओं ने उनके इस फैसले में अहम भूमिका निभाई। इस प्रकार इस घटना से अब साफ हो चुका है कि ट्रंप प्रशासन और निजी क्षेत्र के बीच सामंजस्य की चुनौतियों को समझना आसान नहीं है। यह अंतर्विरोध उस अनुभव को उजागर करता है, जिसके अमेरिकी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर हो सकते हैं।
कहना न होगा कि मस्क और ट्रंप का व्यक्तिगत रिश्ता प्यार और टकराव दोनों वाला रहा है। लिहाजा 2024 के चुनाव में मस्क ट्रंप के बड़े समर्थक थे, लेकिन आर्थिक नीतियों और प्रशासनिक तौर-तरीकों पर मतभेद के चलते दोनों के रिश्ते में दूरियां भी बनीं। भविष्य में मस्क के ट्रंप प्रशासन से रिश्ते कैसे रहेंगे यह कहना अभी मुश्किल है। यह भी संभव है कि कारोबारी नीतियों आदि को लेकर आने वाले समय में उनका ट्रंप प्रशासन के साथ टकराव भी देखने को मिले। यदि टकराव बढ़ता है तो अपनी फितरत के चलते ट्रंप भी चुप नहीं बैठेंगे और उनकी तरफ से होने वाली प्रतिक्रिया मामले को और जटिल ही बनाएगी।
बता दें कि भले ही DOGE को मुख्य रूप से अमेरिकी सरकार की कार्यप्रणाली को सरल बनाने और उसके खर्चों में भारी कटौती करने का काम सौंपा गया, जिसका शुरुआती लक्ष्य 2 खरब डॉलर की बचत करने का था। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अप्रैल 2025 तक केवल 160 अरब डॉलर की ही बचत हो पाई। कुछ रिपोर्ट्स तो यहां तक कहती हैं कि कटौती के उपायों पर ही इतना खर्च हो गया कि उसने कटौती से होने वाले फायदे को बेअसर कर दिया।
बता दें कि मस्क कॉरपोरेट की दुनिया में अपनी सफलता और असफलता दोनों के लिए जाने जाते हैं। उनकी निजी जीवन शैली से लेकर कॉरपोरेट में काम करने का उनका तरीका हमेशा चर्चाओं में रहा है। वे अजीबोगरीब और चौंकाने वाले फैसलों के लिए चर्चित रहते हैं। काफी हद तक यही हाल राष्ट्रपति ट्रंप का भी है। ऐसे में इस जोड़ी के लंबे समय तक साथ चल पाने पर पहले से ही संशय था। अब जब मस्क ने ट्रंप का सरकारी साथ छोड़ दिया है तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस घटना का अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय जगत पर क्या असर पड़ेगा।
अमेरिका के लिए एक असर तो यह संभावित है कि वहां सरकार की नीतियों में बदलाव को लेकर नई बहस खड़ी हो सकती है। DOGE योजनाओं के स्वरूप पर पुनर्विचार के लिए ट्रंप प्रशासन पर दबाव बढ़ सकता है। चूंकि यह इस्तीफा सरकार के भीतर मतभेदों को भी उजागर करता है अत: भविष्य में इसका असर प्राइवेट सेक्टर और सरकार के रिश्तों पर पड़ सकता है।
वहीं यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर की बात करें तो मस्क के जाने से अमेरिका में निवेश करने वालों को यह संदेश जा सकता है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थसत्ता वाले इस देश की आर्थिक नीतियों में स्थिरता नहीं है। टेस्ला और स्पेस एक्स जैसी कंपनियों के चलते मस्क का कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। उनका इस्तीफा अमेरिका की नवाचार और विशिष्ट कार्यक्षमता वाली छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। चूंकि मस्क ने संकेत दिया है कि अब वे राजनीति से दूरी बनाकर अपने कारोबारी उपक्रमों टेस्ला और स्पेस एक्स पर ध्यान देंगे, तो माना जा सकता है कि अब वे सरकारी पचडे से दूर ही रहना चाहेंगे।
कहना न होगा कि एलन मस्क का ट्रंप प्रशासन से इस्तीफा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और कारोबारी घटना है। इसका असर विभिन्न स्तरों पर होगा, लेकिन इसे पूरी तरह से ट्रंप के लिए नकारात्मक मानना भी ठीक नहीं होगा। इसे व्यक्तित्व और विचारधारा के टकराव और कार्यशैली की विसंगति या विरोधाभास के रूप में देखा जा सकता है। क्योंकि मस्क जहां नवाचार, भविष्य की सोच, वैश्विक पूंजीवाद और तकनीक आधारित शासन के पक्षधर हैं वहीं ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रवादी, संरक्षणवादी (प्रोटेक्शनिस्ट) और सख्त सरकार का चेहरा बनकर उभरे हैं।
एक ओर जहां मध्यम वर्ग, स्वतंत्र मतदाता और वैश्विक अभिजात वर्ग के लिए मस्क का जाना ट्रंप की व्यापारिक समझदारी और भविष्य की सोच वाली छवि को चोट पहुंचाता है। वहीं दूसरी ओर ट्रंप समर्थक इस बात से संतुष्ट हो सकते हैं कि ट्रंप वैश्विक शक्तियों से लड़ रहे हैं और ‘अरबपति अभिजात वर्ग’ के दबाव में नहीं आ रहे। इस बात की संभावना कम ही है कि इस घटना के बाद ट्रंप अपनी नीतियों में कोई क्रांतिकारी बदलाव करें या अपने कदम पीछे खींचें।
वहीं, यदि हम ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना करें तो एक बात दोनों में लगभग समान दिखाई देती है। दोनों ही नेता अपनी आलोचना के बाद पीछे हटने के बजाय और अधिक निर्णयात्मक और अपनी धारणाओं के प्रति और अधिक दृढ़ हो जाते हैं। कुल मिलाकर एलन मस्क के इस्तीफे का सार यह है कि ट्रंप सरकार और निजी क्षेत्र के दिग्गजों के बीच सामंजस्य आसान नहीं है। अब देखना होगा कि ट्रंप और मस्क दोनों ही भविष्य में अपने व्यवहार और कार्य से इस घटना को कौनसी दिशा देते हैं। एक दूसरे के प्रति नरमी बरतते हैं या सख्त रवैया अपनाते हैं। जाहिर है दोनों स्थितियों के परिणाम अलग-अलग और दूरगामी होंगे, न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी।
उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद मस्क की खुलकर तारीफ की थी और कहा था कि ‘एक सितारा पैदा हुआ है”। हालांकि यह सितारा असमय ही अस्त हो गया, जिसके लिए ट्रंफ व उनके टीम की मनोदशा भी जिम्मेदार समझी जाती है। चूंकि कॉरपोरेट दुनिया से आए मस्क ने सरकारी तंत्र को कॉरपोरेट अंदाज में सुधारने का बीड़ा उठाया था। उन्हें अपनी प्रशासनिक क्षमता पर बहुत भरोसा था। लेकिन बाद में उन्हें भी यह स्वीकार करना पड़ा था कि कॉरपोरेट जैसी दक्षता सरकार में लाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि सरकारी सिस्टम में बहुत ज्यादा लालफीताशाही और जटिलताएं होती हैं।
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक