समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद और दलित नेता रामजी लाल सुमन ने मेवाड़ के प्रतापी राजपूत शासक राणा सांगा को गद्दार बताते हुए जो विवादस्पद बयान दिया है, और क्षत्रियों की अखिल भारतीय ‘करणी सेना’ ने जिस तरह से उसे जातीय नायकों के अपमान का विषय ठहराते हुए सुमन के घर पर धावा बोल दिया था, उस पर जारी प्रशासनिक और सियासी खानापूर्ति से यदि भारत गृहयुद्ध की आग में झुलस जाए तो किसी को हैरत नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह सबकुछ पहले अमेरिकी-पाकिस्तानी एजेंडे और अब चीनी-बंगलादेशी एजेंडे के अनुरूप हो रहा है, जिसे भारत के कथित सेक्यूलर दलों के पृष्ठ पोषक अरब देशों का समर्थन प्राप्त है।
समझा जाता है कि जब-जब भारत अपनी सही रणनीति के बल पर विकास की गति को प्राप्त करता है, तब-तब हमारे विघ्न संतोषी कुछ राजनेता विदेशी ताकतों की शह पर यहाँ जातीय और सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं। यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि यहाँ की सियासी बयानबाजियां और उससे जुड़े साक्ष्य इस बात की चुगली करते हैं। ऐसे में सुलगता हुआ सवाल है कि आखिर वोट बैंक की कुत्सित राजनीति में निर्लज्ज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग करके कबतक शांतिप्रिय भारतीय समाज को झुलसाया जाता रहेगा| क्योंकि कभी बादशाहों के इशारे पर, कभी ब्रिटिश नौकरशाहों के तिकड़म पर और आज भारत के अपने ही राजनेताओं की शर्मनाक शतरंजी चालों पर एक समाज को दूसरे समाज से भिड़ाया जाता है और अपना-अपना राजनीतिक उल्लू सीधा किया जाता है।
बता दें कि भारत में वामपंथियों की राजनीति वर्गवादी झड़प के हालात पैदा करके, समाजवादियों की राजनीति जातिवादी संघर्ष के हालात पैदा करके और कांग्रेसियों-राष्ट्रवादियों की राजनीति सांप्रदायिक दंगे के हालत पैदा करके खूब फली-फूली! लेकिन विकास के पैमाने पर भारत अपने पड़ोसी देश चीन से 1987 में आगे बढ़कर भी बाद के वर्षों में निरंतर पिछड़ता चला गया। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन जैसे राजनेता एक बार फिर से विवादित बयान देकर लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। ऐसे विषैले नेताओं के खिलाफ स्पष्ट कार्रवाई नहीं होने से प्रशासनिक सुचिता और न्यायिक दूरदर्शिता भी अब सवालों के घेरे में है!
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आप मानें या न मानें, लेकिन मौजूदा विवाद की राजनीतिक कीमत सपा नेता अखिलेश यादव के मुकाबले भाजपा नेता और उत्तरप्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कुछ अधिक अदा करनी पड़ेगी, क्योंकि वह अभी सत्ता में हैं। जिस तरह से आगरा में उनकी मौजूदगी को लेकर अखिलेश यादव ने निशाना साधा है, वह राजपूतों के खिलाफ अन्य समाज को भड़काने की गहरी साजिश है, जिसके दृष्टिगत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सतर्क हो जाना चाहिए और करनी सेना की गैरकानूनी हरकतों पर यूपी में अविलंब रोक लगानी चाहिए।
वहीं भाजपा को भी इस मसले को जरूरत से ज्यादा तूल देने से बचना चाहिए। क्योंकि यह सारी सुनियोजित बयानबाजी मुस्लिम शासकों के कुकृत्यों से दलित और ओबीसी हिन्दुओं का ध्यान भटकाने के लिए की जा रही है, जिसे उसे समझना होगा और इसकी मजबूत रणनीतिक काट निकालनी होगी। यदि भाजपा और योगी इस मामले को ज्यादा तूल देते हैं तो लोकसभा चुनाव 2024 की तरह अखिलेश के पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक गठजोड़ को मजबूती मिलेगी, वहीं भाजपा के डीपीए यानी दलित, पिछड़ा, अगड़ा गठजोड़ को भी सियासी धक्का लगेगा।
वहीं अखिलेश यादव को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जब यूपी में दलित नेत्री मायावती उनकी पार्टी के लिए मजबूत चुनौती बनी हुईं थीं और मुस्लिम वोटर भी बसपा-सपा में लगभग आधा-आधा बंट गए थे तब भी राजपूत समाज उनका मजबूत वोट बैंक रहा था। उन्हें पता होना चाहिए कि यह पूरी राजपूत जाति पहले कांग्रेसियों और फिर समाजवादियों की मजबूत वोट बैंक रही है। यह बात दीगर है कि अब केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबल नेतृत्व के चलते राजपूत मतदाता भी राष्ट्रवादी मिजाज के हो चले हैं। इसलिए पूरी राजपूत जाति को सपा का विरोधी बना देना उनके लिए राजनीतिक नादानी साबित हो सकती है। इससे न केवल बसपा और कांग्रेस को सिर उठाने का मौका मिलेगा, बल्कि सवर्णों में भी उनका इमेज उनके पिता स्व. मुलायम सिंह यादव से ज्यादा खराब हो जाएगा।
ऐसा इसलिए कि हाल में ही सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने बौद्ध मठों के अवशेषों पर मन्दिरों के बने होने और उसे मुद्दा बनाने के जो खतरनाक संकेत दिए हैं, उससे साफ है कि वे अरब देशों और चीनी एजेंडे को देश में लागू करके सवर्ण हिन्दुओं को दलित हिन्दुओं और ओबीसी हिन्दुओं से भिड़ाने की योजना बना रहे हैं, ताकि हिन्दू–मुस्लिम दंगे की जगह जातीय दंगे शुरू हों और समाजवादियों के राजनीतिक आधार पर कोई आंच नहीं आए। भारतीय प्रशासन और न्यायपालिका को सिरफिरे नेताओं के इस खतरनाक इरादे से देश को बचाना होगा, अन्यथा महाभारत तय है।
कहना न होगा कि ये वही विदेशी एजेंट लोग हैं जिन्होंने 1977 में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में मजबूत हो रहे भारत की गति पर ब्रेक लगवाई थी। तब मोरारजी देसाई पर अमेरिकी सीआईए एजेंट होने के आरोप लगे थे जो बाद में देश के प्रधानमंत्री तक बने। भले ही सरकार चलाने में विफल रहे और बदले गए। फिर इन्हीं जैसे नेता लोगों ने 1989 में राजीव गाँधी के नेतृत्व में मजबूत हो रहे भारत की गति पर ब्रेक लगवाई| और अब 2029 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मजबूत हो रहे भारत की गति में ब्रेक लगवाने के लिए गृह युद्ध के हालात पैदा करने जैसी विषाक्त बयानबाजी कर रहे हैं।
बता दें कि सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने दो टूक कहा है कि ”गड़े मुर्दे मत उखाड़ो, बरना भारी पड़ेगा। अगर तुम ये कहोगे कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर है तो फिर हमें भी यह कहना पड़ेगा कि हर मंदिर के नीचे बौद्ध मठ है। और जो लोग बाबा साहब को मानने वाले लोग हैं वो यदि मोहल्ले में जाकर ये प्रचार करना शुरू कर दें तो ये मामला बड़ा ही खतरनाक मामला बन सकता है।”
वहीं आगरा में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने करणी सेना को चेतावनी देते हुए कहा कि आगामी 19 अप्रैल को पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव आगरा आ रहे हैं, जिसके बाद लड़ाई का मैदान तैयार होगा और दो-दो हाथ होंगे। एक तरफ 10 प्रतिशत लोग हैं और दूसरी तरफ 90 प्रतिशत सामाजिक न्याय की शक्तियां हैं, इसलिए विजय हमारी होगी| इस लड़ाई को कोई माई का लाल नहीं हरा सकता।
उन्होंने करणी सेना को फर्जी सेना कहा और पूछा कि अगर मुसलमान में बाबर का डीएनए है तो तुम्हारे अंदर किसका डीएनए है ये भी बता दो। उन्होंने आगे कहा कि अभी कुछ दिन पहले ही एक बैठक हुई, जिसमें तोप तलवार हथियार रहे। उन्होंने याद दिलाया कि भरतपुर के राजा रहे सूरजमल की तलवार ने अंग्रेजों के सिर काटे पर कभी किसी गरीब कमजोर पर उनकी तलवार नहीं चली। क्षत्रिय का तो धर्म होता है कि कमजोर की रक्षा करना है और गरीब की मदद करना है।
वहीं वह आगे बोलते नजर आए कि हमने तो तीन सेना सुनी है- थल सेना, वायु सेना और जल सेना, लेकिन ये चौथी सेना कहां से पैदा हो गई है? करणी सेना के लिए सांसद ने कहा कि हमारी हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि चीन ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है। अरुणाचल प्रदेश को चीन अपने हिस्से में दिखाता है। ये जो करणी सेना के रणबांकुरे हैं वो हिंदुस्तान की सरहद पर चले जाओ और चीन से हमको बचाओ| वरना दुनिया में तुमसे ज्यादा नकली कोई और हो नहीं सकता।
वहीं सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने करनी सेना वालों को ललकारते हुए कहा कि “ये लड़ाई हम लोगों की लड़ाई नहीं है, बल्कि ये लड़ाई लंबी है। ये लड़ाई उन लोगों से है जिन लोगों ने अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री न रहने पर मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धुलवाया था। ये लड़ाई उन लोगों से है जिन्होंने राजस्थान की विधानसभा में दलित नेता प्रतिपक्ष के मंदिर में चले जाने से मंदिर को गंगाजल से धुलवाया था।
सुमन जी ने कहा कि, “हम कहते है कि हिंदुस्तान का मुसलमान बाबर को अपना आदर्श नहीं मानता है, वो मोहम्मद साहब को अपना आदर्श मानता है। हम कहना चाहते हैं कि जब-जब इस देश की इज्जत दांव पर लगी है, हिंदुस्तान के मुसलमान ने साबित किया है कि इस देश की मिट्टी से जितनी मोहब्बत हिन्दू को उतनी मोहब्बत मुसलमान को भी है। उन्होंने सवाल उठाया कि देश में वक्फ को लेकर कानून बनाया गया, जब किसी धर्म महजब की कमेटी बनती है तो उस कमेटी में उसी धर्म के लोग रहते हैं? वक्फ में तीन सनातनी रहेंगे, भाई क्यों रहेंगे और बौद्ध मठ का मामला चल रहा है?
आपको बता दें कि इससे पहले सपा सांसद ने राज्यसभा में अपनी बात रखते हुए राणा सांगा को लेकर विवादित बयान दिया था। हालांकि उनके इस बयान को राज्यसभा की कार्रवाई से हटा दिया गया, लेकिन इसे लेकर करणी सेना में जबरदस्त गुस्सा देखने को मिल रहा है। करणी सेना ने बीते शनिवार को राणा सांगा की जयंती पर आगरा में रक्त स्वाभिमान रैली भी की थी। इस दौरान भारी संख्या में लोग खुलेआम सड़कों पर तलवारें लहराते हुए दिखाई दिए थे। इससे साफ है कि सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने संसदीय सदन में ऐसा बयान दिया जिससे पूरे देश में संग्राम छिड़ गया| सपा सांसद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए, हंगामा और बबाल हुआ था।
वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने करणी सेना के आगरा में प्रदर्शन और धमकी देने पर कहा कि हम डरने वाले नहीं हैं। हम आगरा जाएंगे। हमें एनएसजी हटने का कोई मलाल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यूपी में कानून व्यवस्था जीरो है। उद्योगपति डरे हुए हैं। वह सरकार से सवाल नहीं कर सकते हैं। वन ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी सिर्फ एक सपना है। अखिलेश यादव ने आगरा में करणी सेना के प्रदर्शन और सपा नेताओं को धमकी देने के सवाल पर जवाब देते हुए कहा कि जो डरपोक हैं, वह एनएसजी रखे हैं। मुझे एनएसजी वापस हटने कोई मलाल नहीं। हम लोग महाराजाओं के खिलाफ नहीं है। राजा की कोई जाति नहीं होती है। हम आगरा जाएंगे। हम डरने वाले नहीं है। दिल्ली वाले लखनऊ वालों को चकमा देने में लगे हैं। अब चलाचली की बेला है तो डंडे की बात कर रहे हैं। मैं अपने कार्यकर्ताओं से कहूंगा कि सोशल मीडिया पर कुछ न लिखें।
वहीं उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रामजी लाल सुमन का बचाव करते हुए कहा है कि रामजी लाल सुमन ने भी इतिहास का वो पन्ना पलट दिया, जहां कुछ ऐसा लिखा था। रामजी लाल सुमन समाजवादी पार्टी से मौजूदा राज्यसभा सांसद हैं। जब उनकी टिप्पणी पर विवाद होना शुरू हुआ, तब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनका बचाव किया| उन्होंने कहा कि, “रामजी लाल सुमन ने जो कहा वह इसलिए कहा क्योंकि हर कोई इतिहास के पन्ने पलट रहा है| बीजेपी के नेता औरंगज़ेब पर बहस करना चाहते हैं, तो रामजी लाल सुमन ने भी इतिहास का वो पन्ना पलट दिया, जहां कुछ ऐसा लिखा था।”
इसके बाद जब एक दिन रामजी लाल सुमन के आवास पर करनी सेना की अगुवाई में तोड़फोड़ हुई, तब भी अखिलेश यादव ने बीजेपी को इसके लिए घेरा और कहा कि, “भाजपा ने हमेशा अपने राजनीतिक फायदे और नफरत फैलाने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटा है। इसलिए समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन के आवास के बाहर हुई घटना निंदनीय है।” अखिलेश यादव ने कहा कि, “रामजी लाल सुमन दलित सांसद हैं और उनके पास काफी अनुभव है। उनके आवास पर तब हमला हुआ जब खुद मुख्यमंत्री ज़िले में थे। इसका मतलब यह हुआ कि यह हमला यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सहमति से हुआ। ज़ीरो टोलरेंस की बात करने वालों का टोलरेंस ही ज़ीरो हो गया है।”
वहीं रामजी लाल सुमन के आवास पर हुई तोड़फोड़ की निंदा समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने भी की है। उन्होंने कहा है कि, “अगर हम उत्तर प्रदेश की स्थिति देखें तो यहां सड़कों पर बम फट रहे हैं, यहां महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, यह सब सरकार की ज़िम्मेदारी है। अगर ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। आप समाज और युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं? जिस तरह का उपद्रव पूरे उत्तर प्रदेश में मचाया जा रहा है, उस पर सरकार को सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए। कहीं न कहीं यह सरकार के द्वारा कराई गई हरकत है।”
इस प्रकार उत्तर प्रदेश में राणा सांगा विवाद पर राजनीति थमने का नाम ही नहीं ले रही है। राणा सांगा पर बयान देने के बाद बुधवार (26 मार्च 2025) को प्रदेश के आगरा में समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के आवास पर जमकर हंगामा हुआ। करणी सेना के कार्यकर्ता भारी संख्या में रामजी लाल सुमन के घर के बाहर इकट्ठा हुए और उनके घर में घुसने की कोशिश की। उनके आवास पर हुए हंगामे के दौरान पुलिस और करणी सेना के बीच झड़प भी हुई, जिसमें कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए।
इस तोडफोड़ के बाद करणी सेना के नेता महिपाल मकराना ने कहा, “अभी तो यह एक ट्रेलर है। ऐसे व्यक्तियों को मुंहतोड़ जवाब हमें बहुत पहले देना चाहिए था। जिसमें हम बहुत लेट हो गए। अगर रामजी लाल सुमन की सदस्यता रद्द नहीं की गई, तो एक बहुत बड़ा विरोध प्रदर्शन पूरे देश में देखने को मिलेगा।”
बता दें कि ये विवाद सांसद रामजी लाल सुमन की उस एक टिप्पणी के बाद शुरू हुआ जिसमें गत 21 मार्च 2025 को उन्होंने राज्यसभा में राणा सांगा पर एक विवादित टिप्पणी की थी और राणा सांगा को गद्दार तक बता डाला था। उनकी इस टिप्पणी के बाद करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने उनके ख़िलाफ़ उत्तरप्रदेश के अलावा राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। बता दें कि उस दिन राज्यसभा में गृह मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा पर बहस चल रही थी, जब रामजी लाल सुमन ने इसमें हिस्सा लिया और इस तरह का एक विवादित बयान दिया, जिससे यह सारा विवाद शुरू हुआ।
उन्होंने कहा कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए मुग़ल सम्राट बाबर को भारत में आमंत्रित किया था। उन्होंने कहा कि, “ये तो बीजेपी के लोगों का तकिया कलाम हो गया है कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है, लेकिन हिंदुस्तान का मुसलमान तो बाबर को अपना आदर्श मानता नहीं है, वे तो मोहम्मद साहब को अपना आदर्श मानते हैं, सूफी-संतों की परंपरा को अपना आदर्श मानते हैं।”
इससे आगे उन्होंने सवाल उठाए कि बाबर को भारत में कौन लाया था और कहा कि, “इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था, तो मुसलमान तो बाबर की औलाद हैं और तुम गद्दार राणा सांगा की औलाद हो। ये हिंदुस्तान में तय हो जाना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि, “हम लोग बाबर की तो आलोचना करते हैं लेकिन राणा सांगा की आलोचना नहीं करते हैं।”
इसके बाद जब विवाद शुरू हो गया, तब एक न्यूज़ एजेंसी से बातचीत में रामजी लाल ने अपने इस बयान पर सफाई भी दी थी। उन्होंने कहा कि, “उस दिन संसद में गृह मंत्रालय के कामकाज के दौरान मैंने कहा था कि हिंदुस्तान में बाबर को राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए आमंत्रित किया था। मेरा मक़सद किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था। मेरा बयान न तो किसी जाति के ख़िलाफ़ था, न किसी वर्ग के ख़िलाफ़ था और न ही किसी धर्म के ख़िलाफ़ था।”
हालांकि वह अभी भी अपने इस बयान पर अड़े हुए हैं और उनका कहना है कि वह अपने इस जीवन में तो माफ़ी नहीं मांगेंगे। एक अन्य न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, “जहां तक माफ़ी का सवाल है, तो इस जन्म में तो मैं माफ़ी मांगूंगा नहीं। माफ़ी मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता है| लोगों को सही बातें सुनने की आदत डालनी चाहिए।”
यही वजह है कि रामजी लाल सुमन की इस टिप्पणी के बाद तुरंत बीजेपी ने इसकी निंदा करनी शुरू कर दी। बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं ने उनके इस बयान पर अपना विरोध जताया| केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि, “भारत के इतिहास की समीक्षा करने वाले जब कभी भी समीक्षा करेंगे तो कभी भी बाबर और राणा सांगा दोनों की तुलना करके एक पलड़े में नहीं रख पाएंगे। राणा सांगा ने लोगों में स्वतंत्रता की अलख जलाई थी। उन्होंने भारत को तो गुलाम होने से बचाया ही था, साथ ही भारत की संस्कृति को सनातन बनाए रखने में बहुत बड़ा योगदान दिया था। कुछ तुच्छ बुद्धि और छोटे दिल वाले लोग इस तरह की बातें करते हैं, लेकिन इन चर्चाओं की कोई गुंजाइश नहीं है।”
वहीं राजस्थान की उप-मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने भी रामजी लाल सुमन की टिप्पणी की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि, “संसद में उन सांसद का बयान ग़लत था और उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था। उनको इतिहास की कोई जानकारी ही नहीं है। राणा सांगा ने मेवाड़ और राजस्थान के लिए बहुत कुछ किया है। विपक्ष बिना किसी रिसर्च और जानकारी के महाराणा प्रताप और राणा सांगा के ख़िलाफ़ ऐसे बयान देता है। उन्होंने मातृभूमि के लिए इतने युद्ध लड़े हैं। ऐसे व्यक्तित्वों के लिए ऐसे ओछी टिप्पणी करना उचित नहीं है।”
वहीं बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल ने भी रामजी लाल सुमन की टिप्पणी की आलोचना की और कहा कि, “ये एक फैशन बन गया है। चाहे कांग्रेस हो, समाजवादी पार्टी हो या विपक्ष में कोई और…ये सब खुद को खबरों में बनाए रखने या लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए उल्टी सीधी बयानबाजी करते रहते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “जिस तरह से देश के महापुरुषों का अपमान किया जा रहा है, उससे ऐसा लग रहा है कि वे मानसिक रूप से अस्थिर हो गए हैं। वे देश के इतिहास को गलत बता रहे हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों को जिन्होंने धर्मांतरण किया और मंदिरों को नष्ट किया, अब उनका महिमामंडन किया जा रहा है।”
यही वजह है कि रामजी लाल सुमन की इन टिप्पणियों के बाद अब कानूनी कार्रवाई का दौर भी शुरू हो गया है। इस बारे में आर्य संस्कृति कंजर्वेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष एडवोकेट अजय प्रताप सिंह ने सुमन और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ सिविल सूट (दीवानी मुकदमा) दायर किया है और कहा है कि, “पिछले कुछ दिनों से हमें अख़बारों के माध्यम से जानकारी मिल रही है कि रामजी लाल सुमन लगातार राणा सांगा को गद्दार कह रहे हैं। वह लोगों में झूठी बातें फैला रहे हैं। इस संबंध में मैंने सिविल मुक़दमा दायर किया है, जिसमें मैंने सपा प्रमुख अखिलेश यादव और रामजी लाल सुमन को नामजद किया है।”
# समझिए आखिर कौन हैं रामजी लाल सुमन, जिनके सियासी मंसूबे हिन्दुओं के लिए बहुत ही खतरनाक हैं?
विवादास्पद टिप्पणी करने वाले राजनेता रामजी लाल सुमन उत्तर प्रदेश की अलग-अलग सीटों से चार बार लोकसभा सांसद भी रहे हैं। फिलवक्त वह समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। पिछले साल राज्यसभा में उनकी नियुक्ति ने अखिलेश यादव के ‘पीडीए’ फॉर्मूला को मजबूती दी थी। क्योंकि उत्तर प्रदेश में दलितों तक पार्टी की पहुंच को मजबूत करने के लिए अखिलेश यादव का यह एक रणनीतिक कदम था| बता दें कि रामजी लाल सुमन का राजनीतिक करियर बहुत लंबा और विविधतापूर्ण रहा है। उन्होंने पहली बार 1977 में कांग्रेस विरोधी जनता पार्टी के टिकट पर फिरोज़ाबाद लोकसभा सीट से संसद का रास्ता तय किया। इसके बाद उन्होंने इस सीट से जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़ा और 1989 में भी यहां से सांसद चुने गए। फिर उन्होंने जनता दल के विभाजन से बनी यूपी की समाजवादी पार्टी की ओर रूख़ किया और चुनाव लड़ते हुए फिरोज़ाबाद लोकसभा सीट से ही 1999 और 2004 में सांसद चुने गए। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें हाथरस लोकसभा सीट से 2014 और 2019 में चुनाव लड़ाया, लेकिन वह जीतने में नाकाम रहे| यही वजह है कि अब उनके तेवर तल्ख हैं और बीजेपी के समर्थकों के खिलाफ ज्यादा मुखर हैं। जबकि वह 1990-91 में चंद्रशेखर सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे। इसके अलावा, पिछले साल उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने के लिए राज्यसभा में एक निजी विधेयक भी पेश किया था, जिससे समझा जा सकता है कि वह दलित-मुस्लिम गठजोड़ और ओबीसी-मुस्लिम समीकरण जिसे एम-वाई समीकरण भी समझा जाता है, के बीच एक नया सम्बन्ध सेतु बनकर उभरें हैं।
# जानिए आखिर कौन थे राणा सांगा, जिन्हें राजपूत समाज अपना गौरव मानता है?
बता दें कि राणा सांगा मेवाड़ के बहादुर शासक थे। उन्होंने खानवा में मुग़लों के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा था। दरअसल मेवाड़ के राजपूत शासक रहे संग्राम सिंह को ही लोकप्रिय तौर पर राणा सांगा के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम राजा रायमल और माता का नाम रानी रतन कंवर था। वे उनके तीसरे बेटे थे। उनके पैदा होने की असली तारीख़ के बारे में तो किसी को कोई जानकारी नहीं है, लेकिन ऐसा बताया जाता है कि वह वर्ष 1482 में पैदा हुए थे। ऐसा बताया जाता है कि हालात को देखते हुए सत्ता पर काबिज़ होने के लिए उन्हें अपने बड़े भाइयों- कंवर पृथ्वीराज और जगमल से ही युद्ध करना पड़ा था, जिसके बाद वर्ष 1509 में वे मेवाड़ की गद्दी को हासिल करने में कामयाब हुए। हालाँकि जब वह अपने उत्कर्ष के चरम पर थे, तब उनका साम्राज्य मौजूदा राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था। वहीं मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों के साथ-साथ हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाक़ों पर भी उनका शासन था। चूँकि राणा सांगा की तारीफ़ ख़ुद मुगल सम्राट बाबर ने भी की थी| इसलिए उनकी शूरवीरता असंदिग्ध है। वहीं आमतौर पर उन्हें राजपूतों को एकजुट करने वाले एक दूरदर्शी राजा के रूप में भी देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा ने खानवा के मैदान पर बाबर के ख़िलाफ़ युद्ध के अलावा कोई बड़ा युद्ध नहीं लड़ा। हालांकि उन्होंने दिल्ली सल्तनत के दौरान लोधी सम्राज्य के कुछ इलाक़ों छापा मारा, जिसमें वह कामयाब भी हुए थे।
# देखिए सरकारी किताबों में क्या लिखा है राणा सांगा और उनके समकालीन मुसलमान शासकों के बारे में
राजस्थान की 10वीं कक्षा की इतिहास की किताब के अनुसार, क्षत्रिय राजा राणा सांगा ने 1517 में खतौली की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को पराजित किया था। इसके तत्काल बाद सांगा की सेना ने लोदी की सेना को बाड़ी (धौलपुर) की लड़ाई में भी पराजित किया था। वहीं नेशनल स्कूल ऑफ़ ओपन स्कूलिंग के पाठ्यक्रम के मुताबिक़, लोदी शासन में पंजाब के बड़े हिस्से का गवर्नर (अफ़गान) दौलत ख़ां लोदी का इब्राहिम लोदी से संघर्ष बढ़ रहा था। इसलिए राणा सांगा भी मौके का फायदा उठाकर उत्तर भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने कोशिश में जुटे हुए थे। इसी के सिलेबस के अनुसार, इन दोनों ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने को कहा था। शायद राणा सांगा और दौलत खां लोदी के आमंत्रण ने ही क्रूर मुस्लिम शासक बाबर की प्रशासनिक महत्वाकांक्षा को बढ़ाया होगा। इसी के एक अन्य पाठ्यक्रम में स्पष्ट लिखा है कि बाबर ने भिड़ा (1519-20), सियालकोट (1520), लाहौर (1524) पर कब्ज़ा कर लिया और अंत में 1526 में बाबर और इब्राहिम लोदी की सेना का पानीपत के मैदान में सामना हुआ, जिसमें इब्राहिम लोदी की हार हुई थी। वहीं राजस्थान की 10वीं कक्षा की इतिहास की किताब के अनुसार, राणा सांगा का निधन 30 जनवरी 1528 को दौसा में हुआ था। मंडलगढ़ में उनका एक स्मारक आज भी मौजूद है।
– कमलेश पाण्डेय
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक