जब द्विराष्ट्र सिद्धांत पर पाकिस्तान अटल, तो भारत ढुलमुल क्यों और कबतक हिन्दू चुकाएंगे इसकी कीमत!

जब द्विराष्ट्र सिद्धांत पर 1947 में भारत विभाजन अधिनियम द्वारा भारत से पाकिस्तान को दो हिस्सों में अलग कर दिया गया, तब भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इसका विरोध क्यों नहीं किया, यक्ष प्रश्न है! वहीं, जब भारत के तत्कालीन क्षुद्र राजनेताओं ने हिन्दू राष्ट्र की जगह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का गठन किया, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल क्यों नहीं उठाया, यह दूसरा ज्वलंत प्रश्न है।…..और आज जब भारत में मुसलमानों द्वारा पुनः हिंदुओं को जगह-जगह प्रताड़ित किया जा रहा है, लक्षित सांप्रदायिक दंगे किये जा रहे हैं जिससे 1947 के पूर्व की विभाजनकारी परिस्थितियों की यादें तरोताजा हो जाती हैं और भारत के राजनेता इस पर अपनी-अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे हैं, जिससे भारतीय प्रशासन भी किंकर्तव्यविमूढ़ बना रहता है, तो ऐसे में सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान नहीं लेकर न्यायपूर्ण दिशा निर्देश क्यों नहीं दे रहा है, यह तीसरा सुलगता हुआ सवाल है। 
दरअसल, यह बात मैं इसलिए उठा रहा हूँ कि सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय दिया है कि भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को भारतीय संसद भी नहीं बदल सकती है। क्योंकि भारतीय संविधान की यही मूल भावना है। लेकिन जब हमारी तत्कालीन संसद ने मूर्खतापूर्ण निर्णय लिए, और उसी ने भारतीय संविधान में भी ‘हिन्दू विरोधी कानून’ जड़ दिए, तब इसमें तल्ख इतिहास और सुलगते हुए वर्तमान के दृष्टिगत सुप्रीम कोर्ट से न्यायसंगत और दूरदर्शिता पूर्ण हस्तक्षेप की उम्मीद नहीं की जाए तो फिर किससे की जाए, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। ऐसा इसलिए कि हमारी संसद में हिन्दू नहीं बल्कि दलित, ओबीसी, सवर्ण और अल्पसंख्यक नेता बैठे हैं। पिछले लगभग 8 दशकों के इनके फैसलों से यह जाहिर हो रहा है कि ‘हिन्दू भारत’ के अस्तित्व को खास धर्म के आधार पर पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगलादेश, चीन आदि देशों के द्वारा वैमनस्यता पूर्ण चुनौती दी जा रही है, कभी आतंकवाद, कभी नक्सलवाद, कभी संगठित अपराध और तस्करी के माध्यम से भारतीयों को अशांत बनाया जा रहा है, लेकिन इन सबके खिलाफ इनके ठोस नीतिगत निर्णय कभी नहीं आए, जिससे हिंदुओं का भविष्य अपने ही देश में अधर में लटक चुका है। लिहाजा भारतीय कार्यपालिका की विफलता के बाद सर्वोच्च न्यायपालिका से स्वतः संज्ञान लेकर स्थिति को बदलने की अपेक्षा यदि नहीं की जाए, तो फिर किससे की जाए, सुलगता हुआ सवाल है।

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वह भी तब, जब पाकिस्तानी जनरल और नेता बात-बात में कौम की बात करके भारत के मुसलमानों को भड़काने की कोशिश करते आए हों। वहीं भारत के कतिपय मुसलमान भी खुलेआम पाकिस्तानियों, बंगलादेशियों और आतंकियों के यशोगान पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की शह पर कर रहे हों, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है। ऐसे में इन देशद्रोहियों के खिलाफ स्पष्ट कानून का अभाव भी हिंदुओं को खटकता रहता है। देश में बढ़ती आतंकवादी घटनाएं, नक्सली घटनाएं और अंडरवर्ल्ड के संगठित अपराध और तस्करी की घटनाएं हिंदुओं की इस चिंता को और भी इसलिए बढ़ाती हैं, क्योंकि इन सबकी कमान पाकिस्तान में बैठे अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम जैसे खूंखार लोगों के हाथों में है। पुलवामा के बाद पहलगाम आतंकी हिंसा की कहानी बिना कुछ कहे सब कुछ बता जाती है।
दरअसल, पाकिस्तान के स्वप्नद्रष्टा और निर्माता कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना का ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ यह था कि भारतीय मुसलमान और हिंदू दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, जिनके अलग-अलग धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज और जीवन शैली हैं। यह सिद्धांत 1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में जिन्ना द्वारा प्रस्तुत किया गया था, और इसे ही भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण का आधार बनाया गया। क्योंकि द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत की अवधारणा के  अनुसार, हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और उन्हें अलग-अलग देशों में रहने की आवश्यकता है। तब जिन्ना ने तर्क दिया कि भारत में मुसलमानों को हिंदुओं के साथ मिलकर रहने में कठिनाई होगी, क्योंकि उनके धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में बहुत अंतर है।
उल्लेखनीय है कि द्विराष्ट्र सिद्धांत का उदय 1930 के दशक में हुआ, जब भारत में मुस्लिम लीग ने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग करना शुरू कर दिया। तब जिन्ना और मुस्लिम लीग के अन्य नेताओं ने तर्क दिया कि भारत में मुसलमानों को हिंदुओं के साथ मिलकर एक राष्ट्र में रहने में कठिनाई होगी क्योंकि वे दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। लिहाजा, द्विराष्ट्र सिद्धांत ने भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1947 में, भारत को दो देशों में विभाजित किया गया, जिसे आज भारत और पाकिस्तान कहा जाता है। तब पाकिस्तान एक ऐसा देश था जो विशेष रूप से मुसलमानों के लिए बनाया गया था।
हालांकि, द्विराष्ट्र सिद्धांत की आलोचना की गई है, क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि यह धार्मिक विभाजन का एक साधन था जो भारत के विभाजन का कारण बना। कुछ लोगों का मानना है कि द्विराष्ट्र सिद्धांत ने भारत में धार्मिक तनाव और संघर्ष को भी बढ़ावा दिया। क्योंकि द्विराष्ट्र सिद्धांत एक विवादास्पद सिद्धांत है जिसने भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह सिद्धांत भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन का एक प्रतीक है, और यह आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का एक कारण है। ऐसे में भारत को हिन्दू राष्ट्र का दर्जा दिया जाना बदलते हुए वक्त की मांग है और इस दिशा में बरती गई कोई भी लापरवाही भारतीय संविधान, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया का मौलिक चरित्र एक झटके में बदल देगी, क्योंकि यहां दिन प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा मुस्लिम समाज जब बहुसंख्यक होकर प्रभुत्व में आ जाएगा तो फिर पाकिस्तान और बंगलादेश की तरह सरिया कानून यहां भी थोपा जाएगा। ऐसे में भारत के नेतृत्व को तत्काल आवश्यक कदम उठाने होंगे और यह कार्य बिना सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के असंभव है, क्योंकि हमारे राजनेता दूरदर्शी नहीं बल्कि क्षुद्र स्वभाव के हैं और अपना क्षणिक लाभ ही देखते आए हैं, क्योंकि इनकी सत्ता का स्वभाव भी क्षणिक यानी पांच-पांच साल के टुकड़ों में है।
अभी हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने कहा था कि ‘’हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, एक नहीं। जीवन के सभी पहलुओं में मुसलमान हिंदुओं से अलग हैं। क्योंकि दो-राष्ट्र सिद्धांत इस बुनियादी मान्यता पर आधारित था कि मुसलमान और हिंदू दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, एक नहीं। मुसलमान जीवन के सभी पहलुओं- धर्म, रीति-रिवाज, परंपरा, सोच और आकांक्षाओं में हिंदुओं से अलग हैं।” दरअसल, वह खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के काकुल इलाके में पाकिस्तान सैन्य अकादमी में कैडेटों की पासिंग आउट परेड को संबोधित कर रहे थे। तब जनरल मुनीर ने कहा कि “पाकिस्तान कई बलिदानों के बाद हासिल हुआ था और इसे सुरक्षित रखना सशस्त्र बलों का कर्तव्य है। हमारे पूर्वजों ने पाकिस्तान के निर्माण के लिए बहुत बड़ी कुर्बानियां दी हैं। हम जानते हैं कि इसकी रक्षा कैसे करनी है।”
मसलन, यह पहली बार नहीं है जब मुनीर ने ‘दो-राष्ट्र’ सिद्धांत पर जोर दिया है। बल्कि इससे पहले 16 अप्रैल 2025 को इस्लामाबाद में प्रवासी पाकिस्तानियों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुनीर ने दावा किया था कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग राष्ट्र हैं और उन्होंने दर्शकों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को पाकिस्तान के निर्माण की कहानी बताएं। उन्होंने पाकिस्तान के संस्थापक एम.ए. जिन्ना द्वारा प्रचारित ‘द्वि-राष्ट्र’ सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा, “आपको अपने बच्चों को पाकिस्तान की कहानी बतानी होगी ताकि वे यह न भूलें कि हमारे पूर्वज सोचते थे कि हम जीवन के हर संभव पहलू में हिंदुओं से अलग हैं। हमारे धर्म अलग हैं, हमारे रीति-रिवाज अलग हैं, हमारी परंपराएं अलग हैं, हमारे विचार अलग हैं, हमारी महत्वाकांक्षाएं अलग हैं। यहीं पर दो-राष्ट्र सिद्धांत की नींव रखी गई थी। हम दो राष्ट्र हैं, हम एक राष्ट्र नहीं हैं।”
इससे पहले, इसी संबोधन में कश्मीर के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा था, “हमारा रुख बहुत स्पष्ट है, यह हमारी गले की नस थी, यह हमारी गले की नस रहेगी, और हम इसे नहीं भूलेंगे। हम अपने कश्मीरी भाइयों को उनके वीरतापूर्ण संघर्ष में नहीं छोड़ेंगे।” इस बीच, 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल संधि पर रोक लगाने के बाद पाकिस्तान सरकार ने नहर परियोजना को रोकने का फैसला किया। दरअसल मुनीर का यह बयान जम्मू एवं कश्मीर के पहलगाम जिले में 22 अप्रैल को हुए घातक आतंकवादी हमले के कुछ दिन पहले यानी 16 अप्रैल को और बाद में 25 अप्रैल को भी आया है। इसलिए उनका यह बयान भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव का एक कारण बन चुका है। क्योंकि इस हमले में 26 नागरिक मारे गए थे, जिनमें अधिकतर हिन्दू पर्यटक थे। हैरत की बात है कि उनके हिन्दू धर्म की शिनाख्त करने के बाद उनकी नृशंस हत्या की गई थी और मोदी को संदेश देने की बात आतंकियों ने उनकी विधवाओं को कही थी।
इस नए आतंकी हमले से क्षुब्ध भारत ने सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को रोकने की घोषणा की, जिसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी से मुलाकात की और नहर परियोजना को रोकने पर सहमति जताई। एक समाचार एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वे इस बात पर भी सहमत हुए कि विवादास्पद नहर परियोजना तब तक स्थगित रहेगी जब तक कि कॉमन इंटरेस्ट्स काउंसिल (सीसीआई) में इस मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन जाती। सीसीआई प्रांतों के बीच विवादों से निपटने के लिए एक उच्चस्तरीय अंतर-प्रांतीय निकाय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले के मद्देनजर भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित रखने के निर्णय के बाद पाकिस्तान सरकार ने महत्वाकांक्षी चोलिस्तान नहर परियोजना को रोकने का निर्णय लिया है। बता दें कि सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज ने पंजाब प्रांत के रेगिस्तानी क्षेत्र की सिंचाई के लिए फरवरी में चोलिस्तान परियोजना का उद्घाटन किया था।
वहीं, जो लोग बोलते थे कि सिंधु नदी का पानी रोकने में भारत को 30 साल लगेंगे, तो उनकी बात सही निकली। इसलिए उनके सुझाव को मानते हुए भारत ने रुका हुआ पानी ही छोड़ दिया। क्योंकि सरकार ने ‘नीति’ बदल ली है और तय किया है कि पाकिस्तान को बाढ़ और सूखे दोनों से मारेंगे। यही वजह है कि भारत ने झेलम का पानी बिना नोटिफिकेशन के छोड़ दिया है, जिससे पाकिस्तान का मुजफ्फराबाद और चाकोटी इलाके डूब गए हैं। इससे उत्साहित भारत के लोग टिप्पणी कर रहे हैं कि इनको तब तक मारो, जब तक ये तौबा न कर लें। याद रहे कि आतंकवाद पाकिस्तान-‘पापीस्तान’ की विदेशनीति का  हिस्सा है। जब तक दुनिया के सामने वह लिखकर इस नीति को खत्म करने का वादा न कर ले, तब तक उसे पीटो। क्योंकि जब सारे रास्ते बंद हो जाएं तो यही एकमात्र तरीका है दुष्टों को सुधारने का। अब तो उसके रक्षा मंत्री ने भी आतंकियों को पालने-पोशने की बात स्वीकार कर ली है।
ऐसे में सुलगता हुआ सवाल है कि जब द्विराष्ट्र सिद्धांत पर पाकिस्तान अटल है और मुस्लिम राष्ट्र बन चुका है तो फिर  भारत द्विराष्ट्र सिद्धांत को कबूल करने के बावजूद हिन्दू राष्ट्र बनने को लेकर ढुलमुल क्यों है, क्योंकि वह जिस धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलने को बार बार अपनी प्रतिबद्धता जताता है, उसकी असली कीमत तो हिन्दू समुदाय चुका रहा है। एक ओर मुसलमान पाकिस्तान लेने के बावजूद भारत में रहकर ‘और कितने पाकिस्तान’ बनाने की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं, जिसको पाकिस्तानी और बंगलादेशी प्रशासन शह दे रहा है। वहीं, भारत के राजनेता और उनके द्वारा बनाया हुआ संविधान धर्मनिरपेक्षता की बात तो करता है, लेकिन जातिनिरपेक्ष हिन्दू समाज बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि इससे उनका वोटबैंक बाधित होगा।
इस नजरिए से देखा जाए तो भारत के राजनेताओं ने शुरू से ‘देशद्रोह’ जैसा कार्य किया है। पहले भारत को धर्म के नाम पर बांटा और फिर उसके हिन्दू राष्ट्र बनने में रोड़े अटकाए। वहीं, न्यायालय ने भी भारतीय संविधान को आधार बनाकर हिन्दू राष्ट्र बनाने की परवर्ती कोशिशों की हवा निकाल दी। सवाल है कि भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान द्वारा भारत में जातिव्यवस्था को मजबूत करने और हिंदुओं को कमजोर करने के कुछ ही वर्षों के भीतर हिन्दू धर्म क्यों छोड़ा और बौद्ध क्यों बन गए? क्या उनकी नीयत में शुरू से ही कोई खोंट थी। दूसरा, महत्वपूर्ण सवाल यह है कि गैर हिन्दू धर्म में शादी रचाने वाली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान संशोधन करवाकर इसमें जबर्दस्ती पंथनिरपेक्षता/धर्मनिरपेक्षता को क्यों जगह दी? तब सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर हस्तक्षेप क्यों नहीं किया, यक्ष प्रश्न है। 
जानकार बताते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, बाद के कद्दावर प्रधानमंत्रियों यानी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव आदि ने, मोरारजी देसाई, वीपी सिंह, एचडी देवगौड़ा जैसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों ने अल्पसंख्यक वोट बैंक के लिहाज से भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को तो बनाए रखा, लेकिन रणनीतिक हिन्दू विरोधी सांप्रदायिक दंगों और अपराधों को काबू में नहीं करके शांतिप्रिय हिन्दुओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया। इससे आज देश में गृहयुद्ध की नौबत कभी भी पैदा हो सकती है।
राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि इससे क्षुब्ध हिंदुओं ने सारे धर्मनिरपेक्ष सियासी गद्दारों से अपना हिसाब किताब चुकता कर लिया और अटलबिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने नेतृत्व में भाजपा को मजबूत किया। इससे पहले भाजपा को लोकसभा और राज्यसभा में नेता, प्रतिपक्ष बनने का मौका मिला और अटलबिहारी बाजपेयी भाजपा नीत एनडीए गठबंधन के तीन बार प्रधानमंत्री बने। पहले 13 दिन के लिए, दूसरी बार 13 माह के लिए और तीसरी बार 5 साल के लिए। कहा जाता है कि बड़े उम्मीद के साथ हिंदुओं ने आरएसएस समर्थित भारतीय जनता पार्टी को यानी 2 सीटों वाली पार्टी को पहले सबसे बड़ा दल बनवाया। जिसके बाद एनडीए सरकार बनी। इसने भी हिंदुओं के भविष्य से गेम किया, उसके बाद बाजपेयी जैसे दो मुंहे राजनेता को फिर पीएम बनने का मौका हिंदुओं ने नहीं दिया। ततपश्चात मनमोहन सरकार के हिन्दू विरोधी कार्यों से हिंदुओं ने मोदी सरकार को स्पष्ट बहुमत दिया। 2014 और 2019 में स्पष्ट बहुमत के बावजूद जब बाजपेयी जैसी दोमुंहीं भाषा पीएम नरेंद्र मोदी भी बोलने लगे, तो 2024 में हिंदुओं ने इनकी भी बैशाखी सरकार बनवा दी। अब भी इस सरकार के होश ठिकाने में नहीं हैं। हिन्दू राष्ट्र बनाने के जन उम्मीदों पर यह सरकार भी खरी नहीं उतर पा रही है। वैसे इस सरकार ने राम मंदिर बनवाने, कश्मीर से धारा 370 हटवाने जैसे विभिन्न हिन्दू हितैषी और राष्ट्रवादी कार्य किए, लेकिन ब्रेक के बाद होने वाले आतंकी हमलों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई यह सरकार भी नहीं कर पाई।
इसलिए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के हिन्दू चाहते हैं कि भारत को अविलंब हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाए और यहां के षड़यंत्रकारी धर्मनिरपेक्ष लोगों को पाकिस्तान/पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) भेज दिया जाए, ताकि देश में शांति बनी रहे। वहीं, हिंदुओं में एक तबका ऐसा भी है जो स्पष्ट कहता है कि संयुक्त भारत यानी भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश जब एकीकृत होकर संयुक्त भारत बनेगा, तब वह धर्मनिरपेक्ष देश बनेगा। लेकिन अभी हिंदुओं के हिस्से वाले हिंदुस्तान को अविलंब हिंदू राष्ट्र घोषित करो। भारतीय हिन्दू समाज यह भी चाहता है कि पाकिस्तानी सेना की तरह भारत की सेना भी दबंगई दिखाए और पाकिस्तान-बंगलादेश को भारत में मिला कर  एक समान धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता लागू किया जाए, ताकि दंगा-फसाद की कोई गुंजाइश ही आसेतु हिमालय में नहीं बचे। वहीं, चीन के नाम पर ब्लैकमेल करने वाले पड़ोसी देशों को भी भारत में मिलाकर चीन को दो टूक संदेश दिया जाए कि हिमालय को उत्तर रहो और तिब्बत खाली करो। अन्यथा हिमालय से दक्षिण में दिलचस्पी दिखाए तो अंजाम और भी बुरा होगा। भारत की इन प्रतिबद्धताओं पर अमेरिका-रूस-चीन जैसे रणनीतिकार देश साथ रहे तो ठीक, अन्यथा नई दिल्ली से सबके दूतावास बन्द किए जाएं। 
जहां तक भारत के आंतरिक मामलों की बात है तो जातिवाद और भाषावाद के नाम पर हिंदुओं को बांटने वाले संविधान में अविलंब संशोधन किया जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी को आरक्षण नहीं मिलेगा। बल्कि जन्म लेते ही भारत की कुल भूमि में उस अंतिम जनसंख्या नम्बर से भाग देकर जो भूखंड हिस्सा मिलेगा, उतनी जमीन उसके नाम मिलेगी। उसी प्रकार भारत के कोषागार के लाभांश वाले रुपये में जन्म संख्या से भाग देकर जो हिस्सा मिलेगा, वह रुपया मिलेगा। बाद बाकी खुद जोड़ो, किसी से कोई भेदभाव नहीं। वहीं, हमारा राष्ट्रपति भारत के सबसे गरीब व्यक्ति के वेतन जितना वेतन व सुविधाएं लेगा। बाद वालों को उससे भी कम मिलेगा, क्योंकि लोकतंत्र के अंतिम मालिक से ज्यादा वेतन नौकरों को आखिर क्यों मिलेगा? हां, जिम्मेदारी के अनुरूप सुविधाएं दी जाएं।
विचारकों का मानना है कि मोदी सरकार हिंदुओं की इन समतामूलक भावनाओं को समझे और सबको सुख-शांति-समृद्धि-सुरक्षा आदि की गारंटी दे, अन्यथा 2029 में उसकी फिर विदाई तय होगी। क्योंकि हिन्दू सबकुछ बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन उनसे वोट लेकर उनके भविष्य के साथ ही कोई धर्मनिरपेक्ष सौदेबाजी करे, यह बर्दाश्त से बाहर की बात है! वैसे भी अब पीएम मोदी 75 साल की स्वनिर्धारित उम्र सीमा के पार के होने वाले हैं, इसलिए भाजपा का मार्गदर्शक मंडल उनके ग्रैंड वेलकम की तैयारी कर रहा है।वहीं आरएसएस और भाजपा से उम्मीद लगाए बैठा हिन्दू जनमानस योगी के बुलडोजर का राष्ट्र हित में अनुप्रयोग का इंतजार कर रहा है। क्योंकि अब इस देश के हिंदुओं को  वैसा शासक चाहिए तो सारे कुतर्कवादियों पर बुलडोजर चलाकर शांति बनाए रखने की क्षमता रखता हो। आखिर लोकतांत्रिक नँगा नाच और हिन्दू उत्पीड़न अब बहुत हो चुका, हमें एक निर्वाचित हिन्दू तानाशाह चाहिए, जो अश्वमेध यज्ञ करे और हमारी पुरानी सीमाओं को पुनः प्राप्त करे।
ऐसा इसलिए कि एक ओर पाकिस्तानी नेता और सेनाध्यक्ष बार-बार मर्दानगी दिखा रहे हैं और दूसरी ओर हमारे नेता और सेनाध्यक्ष उसके खिलाफ चार-चार युद्ध जीतकर भी वैचारिक हिंजड़ापन यानी धर्मनिरपेक्षता की राह दिखाए जा रहे हैं, चाहे कारण जो भी हो। आखिर भारत सरकार को यह समझना होगा कि पाकिस्तानी मुस्लिम राष्ट्र का स्वस्थ और संतुलित जवाब भारतीय हिन्दू राष्ट्र ही हो सकता है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि शासन वीरता और पौरुषता से ही चलता है। इसलिए लोकतांत्रिक हिंजड़ेपन, न्यायिक धर्मनिरपेक्षता के चक्कर में भारत के नेताओं को नहीं पड़ना चाहिए। भारत को अपनी सेना और पुलिस को खुली छूट देनी चाहिए कि जाति-धर्म की राजनीति करने वालों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दो। भारत में सिर्फ भारतीय रहेंगे और विदेशी भाषा बोलने वाले पिल्ले या तो विदेश जाएं या फिर स्वर्गलोक, क्योंकि भारत में रहकर भारतीय हिंदुओं को जलाने-मारने की इजाजत किसी भी अन्य धर्म के लोगों को नहीं दी जा सकती है। ऐसे तत्वों से हमारी पुलिस व सेना सख्ती से निपटे, ऐसे स्पष्ट कानून बनने चाहिए। यदि आप नहीं बना सकते तो योगी जी को मौका दीजिए, यूपी की तरह ही आसेतु हिमालय शांत रहेगा। धर्मनिरपेक्ष डॉग्स जेल की सलाखों के पीछे मिलेंगे।
इसलिए भारत के हिन्दू लोग पूछते हैं कि जब द्विराष्ट्र सिद्धांत पर पाकिस्तान अटल है और खुद को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर चुका है तो फिर भारत खुद को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने में ढुलमुल क्यों है और कबतक धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिन्दू चुकाएंगे इसकी कीमत! यक्ष प्रश्न है।
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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